Cochin Shipyard में 4% की गिरावट: OFS के तहत सरकार की 5% हिस्सेदारी बिक्री की योजना

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Cochin Shipyard Limited

सरकार ने Cochin Shipyard लिमिटेड (Cochin Shipyard Ltd) में 5 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने के लिए ओएफएस (Offer for Sale) प्रक्रिया शुरू कर दी है, जिससे कंपनी के शेयरों में 4 प्रतिशत से अधिक की गिरावट दर्ज की गई है। इस ओएफएस के तहत 1,540 रुपये प्रति शेयर की फ्लोर प्राइस पर हिस्सेदारी बेची जाएगी, जो पिछले बंद स्तर से 7 प्रतिशत की छूट दर्शाती है। सरकार की यह हिस्सेदारी बिक्री निवेशकों के बीच काफी चर्चा में है, और इसके कारण कोचीन शिपयार्ड के शेयर मार्केट में काफी हलचल देखने को मिल रही है।

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OFS क्या है? Cochin Shipyard

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OFS या ‘बिक्री के लिए प्रस्ताव’ एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत प्रमोटर, विशेष रूप से सरकारी कंपनियों में, अपने हिस्से की हिस्सेदारी बेचकर धन जुटाते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य कंपनी की वित्तीय गतिशीलता को बनाए रखना और विकास के लिए पूंजी जुटाना है। इस प्रक्रिया के जरिए सरकार और अन्य प्रमोटर कंपनियां निवेशकों को आकर्षित करती हैं, जो फ्लोर प्राइस पर शेयर खरीद सकते हैं।

Cochin Shipyard पर असर

ओएफएस की घोषणा के बाद, Cochin Shipyard के शेयरों में 16 अक्टूबर को 4 प्रतिशत की गिरावट आई। यह गिरावट निवेशकों द्वारा हिस्सेदारी बिक्री के प्रति मिली-जुली प्रतिक्रिया के चलते हुई। 1,540 रुपये प्रति शेयर की फ्लोर प्राइस, जो पिछले बंद स्तर से 7 प्रतिशत कम है, ने निवेशकों को सतर्क किया। हालांकि, यह ओएफएस गैर-खुदरा निवेशकों के लिए खुल चुका है, और 17 अक्टूबर को खुदरा निवेशकों के लिए खुलेगा।

कंपनी ने 2.5 प्रतिशत हिस्सेदारी बिक्री के साथ 2.5 प्रतिशत का ग्रीन शू ऑप्शन भी रखा है, जिससे सरकार कुल 5 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने की योजना बना रही है। इसके तहत 65.77 लाख शेयर बिक्री के लिए पेश किए जाएंगे।

हालिया प्रदर्शन और शेयर मूल्य में गिरावट

Cochin Shipyard के शेयरों में पिछले कुछ महीनों में काफी उतार-चढ़ाव देखा गया है। सितंबर तक, कंपनी के शेयरों में लगभग 10.70 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई, जो 192 रुपये की कीमत में कमी को दर्शाती है। इसके अलावा, पिछले 5 कारोबारी सत्रों में भी कंपनी के शेयरों ने अपने मूल्य का लगभग 4.68 प्रतिशत खो दिया था। 16 अक्टूबर को कंपनी के शेयरों में 4.90 प्रतिशत की और गिरावट आई, जिससे शेयर 1,590 रुपये प्रति शेयर तक गिर गया। यह गिरावट सरकार द्वारा ओएफएस के तहत हिस्सेदारी बेचने की घोषणा के बाद हुई, जिसमें 7.8 प्रतिशत की छूट दी गई थी।

Cochin Shipyard की भविष्य की योजनाएं

हालांकि कंपनी के शेयरों में गिरावट आई है, लेकिन कंपनी की भविष्य की योजनाएं काफी मजबूत हैं। कंपनी ने वित्तीय वर्ष 2025 की पहली तिमाही में 77 प्रतिशत की वृद्धि के साथ शुद्ध लाभ दर्ज किया है, जो 174.2 करोड़ रुपये रहा। इसके अलावा, कंपनी के पास 22,500 करोड़ रुपये की ऑर्डर बुक है, जिसमें 7,820 करोड़ रुपये मूल्य की शिपबिल्डिंग परियोजनाएं शामिल हैं।

कंपनी की इस सफलता के बावजूद, मार्च तिमाही में शुद्ध लाभ में 33 प्रतिशत की गिरावट आई थी, जो 258.8 करोड़ रुपये से घटकर 174.2 करोड़ रुपये रह गई थी। इसके बावजूद, कंपनी की ऑर्डर बुक और पाइपलाइन परियोजनाएं इसे भविष्य में मुनाफा दिलाने के लिए तैयार हैं।

निवेशकों के लिए अवसर

Cochin Shipyard में सरकार की हिस्सेदारी बिक्री निवेशकों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है। कंपनी के शेयरों ने इस साल अब तक 138.4 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की है, जबकि पिछले एक साल में इसमें 206.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। हालांकि, शेयर मार्केट में अस्थिरता के कारण, निवेशकों को सतर्क रहने की आवश्यकता है। ओएफएस के तहत मिलने वाली 7 प्रतिशत की छूट निवेशकों को आकर्षित कर सकती है, लेकिन उन्हें बाजार के रुझान और कंपनी की वित्तीय स्थिति का ध्यान रखना होगा।

Cochin Shipyard की हिस्सेदारी बिक्री का असर

सरकार की Cochin Shipyard में 5 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने की योजना ने बाजार में हलचल पैदा की है। इसके तहत 2,026 करोड़ रुपये की हिस्सेदारी बिक्री की जाएगी, जिससे कंपनी की वित्तीय स्थिति में स्थिरता आ सकती है। यह बिक्री प्रक्रिया 16 अक्टूबर को गैर-खुदरा निवेशकों के लिए शुरू हो चुकी है, और 17 अक्टूबर को खुदरा निवेशकों के लिए खुलेगी।

सरकार के पास फिलहाल कंपनी में 72.86 प्रतिशत हिस्सेदारी है, और इस हिस्सेदारी बिक्री के बाद भी सरकार की हिस्सेदारी में कमी आएगी, लेकिन कंपनी पर इसका ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।

Cochin Shipyard की हिस्सेदारी बिक्री और उसके शेयर मूल्य में गिरावट निवेशकों के लिए सतर्कता का संकेत है। हालांकि, कंपनी की मजबूत ऑर्डर बुक और शिपबिल्डिंग परियोजनाएं इसे भविष्य में लाभदायक बनाए रखने की उम्मीद देती हैं। निवेशकों को इस मौके का फायदा उठाना चाहिए, लेकिन इसके साथ ही बाजार के उतार-चढ़ाव और कंपनी की वित्तीय स्थिति का ध्यान भी रखना आवश्यक है।

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