भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 9 अक्टूबर 2024 को अपनी मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक में रेपो दर को 6.5% पर स्थिर रखा। RBI गवर्नर शक्तिकांत दास के नेतृत्व वाली समिति ने देश की आर्थिक स्थिति का व्यापक मूल्यांकन करते हुए तटस्थ रुख अपनाने का निर्णय लिया। आइए, विस्तार से समझें कि इस फैसले के क्या प्रभाव हो सकते हैं।
RBI का रेपो दर निर्णय: अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
रेपो दर वह दर होती है जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक RBI अन्य बैंकों को उधार देता है। इस दर का सीधा असर देश की ब्याज दरों पर पड़ता है, जिससे लोन और वित्तीय उत्पादों की लागत तय होती है। लगातार 10वीं बार रेपो दर को 6.5% पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय, यह संकेत देता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था स्थिरता की दिशा में बढ़ रही है।
RBI की तटस्थ नीति: दर कटौती की संभावना
मौद्रिक नीति समिति के तटस्थ रुख को अपनाना दरों में कटौती के संकेत दे सकता है। ICRA की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर के अनुसार, इस निर्णय से दिसंबर में संभावित दर कटौती का मार्ग प्रशस्त होता है, बशर्ते मुद्रास्फीति के जोखिम नियंत्रित रहें। उनका मानना है कि आगामी दर-कटौती चक्र मामूली रहेगा, जिसमें केवल 50 आधार अंकों की कटौती हो सकती है।
दिसंबर और मार्च 2024 में संभावित दर कटौती
अर्थशास्त्रियों के अनुसार, दिसंबर 2024 और मार्च 2025 में क्रमशः 25-25 आधार अंकों की दर कटौती संभव है। केयरएज की मुख्य अर्थशास्त्री रजनी सिन्हा ने भी इस दृष्टिकोण का समर्थन किया, और बताया कि अगर खाद्य मुद्रास्फीति में कमी आती है तो RBI इन दरों में कटौती कर सकता है। उन्होंने कहा कि हाल के आर्थिक संकेतक, जैसे कि कोर सेक्टर में गिरावट, जीएसटी संग्रह में सुस्ती, और वाहन बिक्री में कमी, भी दर कटौती की दिशा में इशारा कर रहे हैं।
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मुद्रास्फीति नियंत्रण: एक महत्वपूर्ण चुनौती
मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखना RBI के लिए एक प्रमुख चुनौती बनी हुई है। 2024-25 के लिए केंद्रीय बैंक ने अपने मुद्रास्फीति अनुमान को 4.5% पर स्थिर रखा है। गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस बात पर जोर दिया कि मुद्रास्फीति को “कड़ी लगाम” में रखना आवश्यक है, क्योंकि इसे अनियंत्रित छोड़ने पर यह फिर से तेजी से बढ़ सकती है।
FDI प्रवाह में मजबूती: भारत की विकास कहानी
वित्त वर्ष 2024-25 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के आंकड़े भारत की मजबूत आर्थिक स्थिति की ओर इशारा करते हैं। अप्रैल से जुलाई 2024 के बीच सकल और शुद्ध FDI प्रवाह में सुधार देखा गया है। यह दर्शाता है कि वैश्विक निवेशक भारतीय अर्थव्यवस्था में विश्वास बनाए हुए हैं, जो दीर्घकालिक विकास की दिशा में एक सकारात्मक संकेत है।
RBI की आगामी चुनौतियाँ: विकास बनाम मुद्रास्फीति का संतुलन
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति को भविष्य में दो बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा – एक ओर देश के विकास को बनाए रखना, और दूसरी ओर मुद्रास्फीति पर नियंत्रण रखना। शक्तिकांत दास ने स्पष्ट रूप से कहा कि अगर मुद्रास्फीति को नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। इसके साथ ही, विकास को भी प्राथमिकता देनी होगी, ताकि देश की आर्थिक गति बनी रहे और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भारत अपनी स्थिति मजबूत रख सके।
दुनिया भर की मौद्रिक नीतियों का प्रभाव: भारत की रणनीति
विश्वभर में ब्याज दरों में कटौती का सिलसिला शुरू हो चुका है। अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने भी अपनी पिछली नीति बैठक में ब्याज दरों में कटौती की है, जिससे वैश्विक आर्थिक विकास को समर्थन मिला है। इस संदर्भ में, भारत को भी अपनी मौद्रिक नीति में लचीला रुख अपनाना होगा ताकि वैश्विक आर्थिक परिवर्तनों के बीच वह अपनी स्थिति को सुदृढ़ रख सके।
हालांकि, भारत का दर-कटौती चक्र अपेक्षाकृत उथला रहने की संभावना है, जैसा कि विशेषज्ञों का मानना है। इसके पीछे एक बड़ा कारण यह है कि मुद्रास्फीति को काबू में रखना अभी भी एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता है। दर कटौती के साथ, यह सुनिश्चित करना होगा कि मुद्रास्फीति के जोखिम वास्तविक न हों, ताकि आर्थिक संतुलन बिगड़ने न पाए।
घरेलू आर्थिक संकेतक और उनका महत्व
कोर सेक्टर, पीएमआई मैन्युफैक्चरिंग, जीएसटी संग्रह, और यात्री कार बिक्री जैसे उच्च आवृत्ति वाले आर्थिक संकेतक मौद्रिक नीति निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हाल के महीनों में इन संकेतकों में कुछ नरमी आई है, जो यह दर्शाती है कि अर्थव्यवस्था के कुछ हिस्सों में मंदी आ सकती है। ऐसे में, आरबीआई को ध्यानपूर्वक अपने अगले कदमों का आकलन करना होगा, ताकि आर्थिक स्थिरता बनी रहे और विकास को प्रोत्साहन मिले।
दर कटौती का संभावित समय: क्या हो सकते हैं इसके फायदे
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि दिसंबर और मार्च की नीति समीक्षाओं में दर कटौती की संभावनाएं मजबूत हैं। यह कदम व्यवसायों और उपभोक्ताओं दोनों के लिए फायदेमंद हो सकता है। दरों में कटौती से लोन सस्ता हो सकते हैं, जिससे व्यापारिक निवेश और उपभोक्ता खर्च में वृद्धि हो सकती है। इसका परिणाम यह हो सकता है कि अर्थव्यवस्था को नई गति मिले और विकास दर में सुधार हो।
रुपये की स्थिति और वैश्विक व्यापार
भारत के रुपये की स्थिति भी मौद्रिक नीति के फैसलों पर असर डाल सकती है। वैश्विक बाजारों में रुपये की मजबूती से निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है, जबकि इसके कमजोर होने से आयात महंगे हो सकते हैं। मौद्रिक नीति समिति को रुपये की स्थिति पर भी ध्यान देना होगा ताकि वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ सके और देश को विदेशी मुद्रा में स्थिरता मिले।
निवेशकों का भरोसा: FDI में सुधार के संकेत
विदेशी निवेशकों का भरोसा भारतीय बाजारों पर मजबूत बना हुआ है, और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में सुधार इसका प्रमाण है। 2024-25 में, भारतीय बाजार में विदेशी निवेश प्रवाह में वृद्धि दर्ज की गई है, जो यह दर्शाता है कि वैश्विक निवेशक भारत की दीर्घकालिक आर्थिक संभावनाओं पर विश्वास रखते हैं। यह प्रवृत्ति आने वाले समय में भी जारी रहने की संभावना है, विशेष रूप से अगर RBI अपने संतुलित मौद्रिक नीति के रुख को बनाए रखता है।
भविष्य की नीतियाँ: स्थिरता और विकास का एक संतुलित दृष्टिकोण
RBI की मौद्रिक नीति समिति के सामने आने वाले समय में सबसे बड़ी चुनौती स्थिरता और विकास के बीच सही संतुलन बनाए रखना होगी। मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखना आवश्यक है, लेकिन साथ ही आर्थिक विकास को भी प्रोत्साहित करना महत्वपूर्ण है। दरों में संभावित कटौती के साथ-साथ विकासोन्मुख नीतियों का क्रियान्वयन भविष्य की नीतियों का मुख्य हिस्सा हो सकता है।
भारत की आर्थिक नीति का भविष्य
RBI के मौद्रिक नीति निर्णयों से यह साफ संकेत मिलता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था स्थिरता की दिशा में बढ़ रही है। दरों को अपरिवर्तित रखने का निर्णय विकास और मुद्रास्फीति के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास है। तटस्थ रुख के साथ दर कटौती की संभावनाएं खुली हैं, जो आने वाले महीनों में आर्थिक विकास को नई दिशा दे सकती हैं।
भारत की आर्थिक स्थिति मजबूत बनी हुई है, और निवेशकों का भरोसा भी बरकरार है। मुद्रास्फीति नियंत्रण में रहने पर, आने वाले समय में आरबीआई द्वारा लिए गए निर्णय देश की आर्थिक गति को तेज करने में मददगार साबित हो सकते हैं।